ह्वे गै छा। ज्यां की वजै से एक खतरनाक अकाल पौड़ी गै, अर यों दिनों मा प्रद्धम्नशाह (1797-1804 ई. सन्) राजा छौ। अर अभि यू अकाल पौड़ी ही छौ, कि ऊं दिनों मा ही नेपाल की राजनीति गोरखाणी रानी का हाथों मा छै। अर कुमाऊँ गढ़वाल त 1790 ई. सन् बटि गोरखो का कबजा मा छौ। अर गढवाळ पर लडै करण को यू बगत यों तैं भौत अच्छु लगि त ऊंन फरबरी 1803 ई. सन् मा गोरखा सेना अमरसिंह थापा अर हस्तीदल चौतरिया का सेना की देख-रेख मा गढ़वाळ पर अपणी लडै छैड़ी दिनी। अर राजा प्रद्धम्नशाह तैं श्रीनग छोड़ी के भगड़ पोड़ी, मगर फिर भि राजा न अपणी हिम्मत नि हारी, अर 14 मई 1804 का दिन पर राजा प्रद्धम्नशाह देहरादून का खुड़बुड़ा नौ की जगा मा गोरखा बटि लडै का बगत ऊँका हाथों बटि मरै गै। अर इन कैरिके गोरखों न पूरा गढ़वाल मा अपणु राज कैरी। अर काफी बगत तक यों न राज कैरी, मगर कुछ और राजा ऊँका खिलाप मा छा। मगर यों का पास मा इथगा सेना नि छै कि यू लडै कैरी सैका, इलै यों न अंगरेजों बटि मदद माँगी, बदला मा पैसा देण को वादा कैरी। अर ऊंन गोरखो तैं लड़ै मा हरै के गढवाळ बटि वापिस जाण पर मजबूर कैरी दिनी। मगर जब्ब गोरखा चलि गैनी त वादा का अनुसार पैसा तैं देणे की यों हिम्मत नि ह्वे, किलैकि यों मा पैसा नि छा, इलै अंगरेजों न येका बदला मा गढ़वाळ का दूसरा हिस्सा याने की टिहरी गढ़वाळ तैं ईस्ट इंण्डिया कम्पनी तैं दे दिनी।
1856 से लेके 1884 तक को यू बगत ब्रिटिश काल को सब्ब से अच्छु बगत मणै गै, ये बगत उत्तराखण्ड की देख-रेख हैनरी रैमजै का हाथों मा छै।
आंदोलन
गोरखा शासन का खतम होण का बाद जब्ब गढ़वाळ मा अंगरेजी शासन चलण लगि गै अर ये बगत सुदर्शनशाह को टिहरी गढ़वाळ को रजवाड सम्भळ्यु छौ। अर ये बगत कै का मन मा भि अंगरेजों का खिलाप कुई बुरी इच्छा नि छै, अर गोरखों बटि आजादी मिलण का बाद यो न अंगरेजों तैं एक मोक्षदाता समझी। यूई कारण छौ, कि गढ़वाळ मा आजादी को यू आंदोलन बीसवी सदी मा शुरु ह्वे।
सन् 1919 मा बैरिस्टर मुकंदीलाल न अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का दगड़ा मिली के गढ़वाल मा राष्टीय कांग्रेस की नीब डाली। तब्ब वे बगत पर मथुरा प्रसाद नैथानी, भोलादत्त चंदोला,भोलादत्त डबराल और भौत सा लोगु न सत्याग्रह आंदोलन मा बड़ी तेजि से भाग लै। अर 1929 तक गढ़वाल मा भि ये आंदोलन की आग जगि गै छै,
23 अप्रैल 1930 कू जाणा-माणा वीर चन्द्रसिंह गढ़वाळि न निहत्था लोगु