गढवळी बोलि
गढवळी बोलि मा सब्ब से कठिन काम च, ईं बोलि का शब्दो को उच्चारण करण, किलैकि गढ़बळी बोलि मा लम्बु सुर ‘आ’, ‘ई’ ‘ऊ’ ‘औ’ त हिन्दी की ही तरौं छिन। मगर जब्ब जोर देके या और लम्बु सुर कैरिके बुलै जान्दु त शब्द को मतलब बदळि जान्दु। जन कि ‘चार’ को मतलब च संख्या या चरागाह मगर जब्ब चार का ‘आ’ बोन्न पर जोर दिये जान्दु त येको मतलब च ‘की तरह’ ( मतलब की तरौं अर्थ वींका ऐन सैन अपणी ब्वेकि चार च)। अर इन और भि शब्द छिन, जन की आरु (आरी) आरु (आडू) बाळो (बालक) बाळो (रेत) अर इन्नि भौत सा शब्द छिन।
हरेक भाषा की
दाळ छाळी च। (पतली दाल)
भलु नौनु ( अच्छा लड़का)
दाळ छाऽळी च (बहुत पतली दाल)
भलुऽ नौनु (बहुत अच्छा लड़का)
गढ़वली बोलि का मुख्या व्यंजन
क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ण्ह:, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, र्ह, ल, ळ, ल्ह, व, श, ष, स, ह,
‘ळ’ अर ‘ण’ को उच्चारण गढ़वळी मा हिन्दी से अलग च। गढ़वळी मा शब्द का बीच मा अर अखरी मा आण वळु ‘न’ ‘ण’ ह्वे जान्दु। जन कि विनास- विणास,
बहुत काली है – भौत काळी च
द्वार खोल – द्वार खोळ
बाल कटना है- बाळ कटण
घोल दे – घोळ दे
अगर तुम चन्द्यां की और जादा पडै अर सिखै जौ, त अपणु रैबार हम मूडी लिख्यां पता पर भेजा